किराया बनाम खरीद: भारत में 5% का नियम क्या है?
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किराया बनाम खरीद: भारत में 5% का नियम क्या है?

क्या घर खरीदना हमेशा बेहतर होता है? 5% नियम आपको किराए और ईएमआई (EMI) की वास्तविक लागत की तुलना करने में मदद करता है।

किराया बनाम खरीद: भारत में 5% का नियम क्या है?

नोट: यह सामग्री भारतीय रियल एस्टेट बाजार के लिए है.

भारत में, अपना घर होना एक बड़ा भावनात्मक लक्ष्य है। लेकिन क्या वित्तीय रूप से यह सही है? भारतीय शहरों में किराये की उपज (Rental Yield) बहुत कम है (2-3%), जबकि होम लोन की ब्याज दरें बहुत अधिक हैं (8.5%-9.5%)।

यह असंतुलन कई बार किराए पर रहने को आर्थिक रूप से समझदार बनाता है। निर्णय लेने के लिए, विशेषज्ञ 5% के नियम का उपयोग करते हैं।

5% का नियम (भारतीय संदर्भ में)

यह नियम कहता है कि एक घर के मालिक होने की अपरिवर्तनीय लागत (Unrecoverable Costs) घर के मूल्य का लगभग 5% सालाना होती है।

  1. पूंजी की लागत (3%): यह वह ब्याज है जो आप बैंक को देते हैं या वह रिटर्न है जो आप खो देते हैं यदि आपने अपना पैसा एफडी (FD) या म्यूचुअल फंड में लगाया होता।
  2. रखरखाव (1%): पेंटिंग, मरम्मत, सोसाइटी शुल्क।
  3. कर और मूल्यह्रास (1%): संपत्ति कर और पुरानी इमारत की घटती कीमत।

गणना कैसे करें?

मान लीजिए आप 1 करोड़ रुपये का फ्लैट देख रहे हैं।

  • 1 करोड़ x 5% = 5 लाख रुपये प्रति वर्ष (अपरिवर्तनीय लागत)।
  • 5 लाख / 12 महीने = 41,666 रुपये प्रति माह

फैसला:

  • यदि आप उसी फ्लैट को 41,666 रुपये से कम में किराए पर ले सकते हैं, तो किराए पर रहना बेहतर है। (भारत में 1 करोड़ के फ्लैट का किराया अक्सर 25-30 हजार होता है)।
  • बाचे हुए पैसे को एसआईपी (SIP) में निवेश करें।

निष्कर्ष

भारत में, वित्तीय गणित अक्सर किराए के पक्ष में होता है। लेकिन घर खरीदने का भावनात्मक सुरक्षा और 'जमीन का मालिक' होने का गौरव अपना अलग महत्व रखता है।

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